घर…

हम अकेलेपन के अँधेरे में खो रहे थे,
ये दुनिया कहती थी
हम घर में सो रहे थे…

दर्द भी छुपाते थे (और)
मरहम भी लगाते थे,
हम दरअसल दीवारों में घर ढ़ो रहे थे…

कुछ अरमान भी थे ख़ैर यूं तो,
वो मग़र झूमर पर झूल रहे थे…
एक कहानी बन गई दरवाज़ों के पीछे,
आलमारियों को दीमक़ चख रहे थे…

बैठा था वो पुराना घर भी
दफ़्न किये, कई राज़
जो उसे बेहद तंग कर रहे थे…

#रshmi

©TheRashmiMishra.com

 

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