तेरा शुक्रिया..

बेबाकी किसी को रास ना आई तेरी, नज़रें झुका कर चलना तेरा हरेक को अजीज़ हुआ करता है.. तूने भले ही आज के दौर में साँसें ली हों, पर जीना तेरा अब भी बहुतों को गवारा नहीं हुआ करता है.. हर कदम पर संघर्ष पाया है, फिर भी तूने साहस दिखाया है, तुझे ना आज …

She..

Rashmi Mishra

She is a story, unsaid
She is a poetry, unsung
She is a history, unread
She is a scenery, unobserved
She is a glossary, unnoticed
She is bravery, uncelebrated.
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She is a voice, unheard
She is a feeling, undesired
She is laughter, unappreciated
She is beam, unilluminated.
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She is questionnaire, unsolved
She is a dare, unchallenged
She is a prayer, unblessed
She is a heart, unloved
She is joyous, undelighted
She is overlooked, unexcused.

yercaudShe is woman, unattempted!

 
#रshmi

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बेटी हूँ मैं..

मुझे मेरी जड़ों से जुदा मत करो, वरना हर उखड़े पौधे सी मैं भी मुरझा जाऊँगी.. अस्तित्व को अपनें ख़ोकर ना उसने किसी को कुछ दिया ना वो किसी को याद आया। मुझे मेरी पहचान से जुदा मत करो, वरना हर फटे पन्ने सी मैं भी तहस-नहस हो जाऊँगी.. लिखे हर अक्षर को फाड़ कर …

चिड़िया …

कभी इस डाल, कभी उस डाल पर रहती है, चिड़ियों का आशियाना आलिशान नहीं होता.. होता है तो अपना हौसला कितनी निश्छल होती है, सबको  ख़ुद  सा समझती है.. जानती है के ये उजाड़ ही देगी एक दिन, फिर भी अपना घोंसला बेदर्दों के बीच बनाती है.. वो मस्त जीती हैं, अपनी उड़ान, अपने विश्वास …

राजनीति

देश के दिल को इस क़दर खा रही, जैसे राजनीति दावत मना रही.. भाषाओं के भी धर्म बता रही, देखो राजनीति बँटवारे करवा रही.. आँखों पर कंबल ढ़के सो रही, कानों के पट बंद किये बोल रही, ये राजनीति अँधी - बहरी हो गई.. राष्ट्र का सौदा कर इसे आपसी समझौता बता रही, ये राजनीति …

बचपन की बात..

बचपन की हर बात ये बड्डपन में समझाता है, दिल तो बच्चा है हमारा.. कहाँ नुक्कड़ से मैं गोल गप्पे ले आता था, अब हाइजीन ने तौबा करवा दी.. आज भी दिल को बहुत अजीज़ है वो बचपन वाली ख़रीददारी, जब 1₹ में ले आते थे 'टॉफियां' ढेर सारी.. सब पल वो बचपन में थे, …

मैं हर वो औरत हूँ..

Rashmi Mishra

अपनें जज़्बातों को दबाए रखना पडता था, अपनी आवाज़ को बंद रख़ना पडता था..
मेरे मन की सुननेे वाला कोई नहीं था, सबके मन का मग़र मुझे करना पडता था..
मुझे क्या चोट पहुँचाता गया, इससे किसी को कोई सरोकार नहीं था..
हर एक की चोट पर मरहम करना मग़र मेरा कर्तव्य बताया गया..
जब जब मैनें ख़िलाफ़त की, मुझे बग़ावती हो जाने के डर से दुत्कारा गया..
जब जब सर उठा कर मैनें चलना चाहा, मेरे सपनों को एडी तले रौंद कर रक्ख़ दिया..
मैनें आग़े बढना चाहा तो शादी करवा कर घर से निकाल दिया, मुझे माँ ने कुछ इसी तरह आगे बढा दिया..
मैनें जब अपनें मन की पति से कही, उसने अपनी माँ का हवाला देकर टाल दिया..
जब उसकी माँ से कहा मैनें, उन्होंने चूडी- बिछिया और बिंदी थमा कर टरका दिया..
फिर यही सोचती रह गई मैं, के मुझ में मैं ही हूँ या…

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बचपन

कितना बेफ़िक़्र ये बचपन होता है, कोई बंदिशें ना कोई खोट होता है.. होती हैं जो हमसे वो प्यारी सी खतायें, कैसे बड़ी जल्दी सब माफ़ होता है.. शायद सब को हमारी उन हरकतों से बस तभी प्यार होता है, माना बचपन में बड़ा होना एक ख्वाब होता है, पर लगता है सिर्फ बचपन में …

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