क़द..

क़द छोटा रह गया सपनों की उडानों से, पर जद्दो- जहद ज़ारी है…
ज़िंदगी तू भी कब तक मुझ पर भारी है?

चल देख़ें तेरा भी कुछ क़माल, आ करें दो-दो हाथ..
तूने बहुत की तैयारी है, आ भी जा अब फिर मेरी बारी है
तुझसे उम्मीदें रखी, ये बडी मेरी नादानी है
तूने भी दिख़ा दिया ढंग अपना, ये कैसी तेरी होशियारी है?

फिर कहना नहीं के तू मुझ पर भारी है,
जो होती इतनी भारी तो भला क्यों तू मेरी कहलाती, मुझे नहीं तेरी कहा जाता?
लौट कर तेरा क़द फिर क्यों बार बार मुझ तक ही आ जाता?
मुझ सी छोटी हो कर भी तू मुझे प्यारी है.. शायद इसीलिये तू मेरी कहलाती है।

#रshmi

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