बेअदब है इरादा जनाब का, मुड़-मुड़ कर देखते हैं हुज़ूर-ए-आला, उलझन है हमें... ये इश्क़ की साज़िश है के मोहब्बत का क़ायदा? हिचकोले खाती, डोलती, झूमती ये नदियाँ.. मेरी कश्ती में ना साहिल है, ना किनारा.. जाने कहाँ डूब जाए.. ये पानी की गहराई है के लहरों की अठखेलियाँ... हुज़ूर-ए-आला, उलझन है हमें... ये इश्क़ …
क़द..
क़द छोटा रह गया सपनों की उडानों से, पर जद्दो- जहद ज़ारी है… ज़िंदगी तू भी कब तक मुझ पर भारी है? चल देख़ें तेरा भी कुछ क़माल, आ करें दो-दो हाथ.. तूने बहुत की तैयारी है, आ भी जा अब फिर मेरी बारी है तुझसे उम्मीदें रखी, ये बडी मेरी नादानी है तूने भी …
तेरा शुक्रिया..
बेबाकी किसी को रास ना आई तेरी, नज़रें झुका कर चलना तेरा हरेक को अजीज़ हुआ करता है.. तूने भले ही आज के दौर में साँसें ली हों, पर जीना तेरा अब भी बहुतों को गवारा नहीं हुआ करता है.. हर कदम पर संघर्ष पाया है, फिर भी तूने साहस दिखाया है, तुझे ना आज …
बेटी हूँ मैं..
मुझे मेरी जड़ों से जुदा मत करो, वरना हर उखड़े पौधे सी मैं भी मुरझा जाऊँगी.. अस्तित्व को अपनें ख़ोकर ना उसने किसी को कुछ दिया ना वो किसी को याद आया। मुझे मेरी पहचान से जुदा मत करो, वरना हर फटे पन्ने सी मैं भी तहस-नहस हो जाऊँगी.. लिखे हर अक्षर को फाड़ कर …
चिड़िया …
कभी इस डाल, कभी उस डाल पर रहती है, चिड़ियों का आशियाना आलिशान नहीं होता.. होता है तो अपना हौसला कितनी निश्छल होती है, सबको ख़ुद सा समझती है.. जानती है के ये उजाड़ ही देगी एक दिन, फिर भी अपना घोंसला बेदर्दों के बीच बनाती है.. वो मस्त जीती हैं, अपनी उड़ान, अपने विश्वास …
राजनीति
देश के दिल को इस क़दर खा रही, जैसे राजनीति दावत मना रही.. भाषाओं के भी धर्म बता रही, देखो राजनीति बँटवारे करवा रही.. आँखों पर कंबल ढ़के सो रही, कानों के पट बंद किये बोल रही, ये राजनीति अँधी - बहरी हो गई.. राष्ट्र का सौदा कर इसे आपसी समझौता बता रही, ये राजनीति …
बचपन की बात..
बचपन की हर बात ये बड्डपन में समझाता है, दिल तो बच्चा है हमारा.. कहाँ नुक्कड़ से मैं गोल गप्पे ले आता था, अब हाइजीन ने तौबा करवा दी.. आज भी दिल को बहुत अजीज़ है वो बचपन वाली ख़रीददारी, जब 1₹ में ले आते थे 'टॉफियां' ढेर सारी.. सब पल वो बचपन में थे, …
बचपन
कितना बेफ़िक़्र ये बचपन होता है, कोई बंदिशें ना कोई खोट होता है.. होती हैं जो हमसे वो प्यारी सी खतायें, कैसे बड़ी जल्दी सब माफ़ होता है.. शायद सब को हमारी उन हरकतों से बस तभी प्यार होता है, माना बचपन में बड़ा होना एक ख्वाब होता है, पर लगता है सिर्फ बचपन में …
बेबस बेटी
कल देखा उसे गली के नुक्कड़ पर बनी अपनी कोटड़ी से बाहर बैठे हँसते हुए, किसी से बातें करते, शायद भाई था उसका। उतना खुलकर हँसना तो बेशक हमें भी नहीं आता जैसे उसकी हँसी ख़िलख़िला रही थी, सच ही तो कहते हैं ख़ुशियाँ खुले बाज़ारों से ज़्यादा इस खुले आसमान के नीचे मिलती हैं.. फ्लैट्स …
मैं हर वो औरत हूँ..
अपनें जज़्बातों को दबाए रखना पड़ता था, अपनी आवाज़ को बंद रख़ना पड़ता था.. मेरे मन की सुनने वाला कोई नहीं था, सबके मन का मग़र मुझे करना पड़ता था.. मुझे क्या चोट पहुँचाता गया इससे किसी को कोई सरोकार नहीं था, हर एक की चोट पर मरहम करना मग़र मेरा कर्तव्य बताया गया.. जब जब मैनें …
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