माँ!

तूने कितनें कष्ट सहे, तब जा कर हम बड़े हुए…
माँ!
क्या तुम ऊपर वाले से कभी मिलकर आई हो?
इतनी शक्ति कहाँ से लाई हो?
सब सह लेती हो तुम और ख़ामोश रह लेती हो तुम।
मैं कभी तुझ सी ना हो पाऊँगी,
दिल में दर्द रख़ कर कभी ना मुस्कुरा पाऊँगी…
तुझको कितना सताया सबने,
तूने हँसते हँसते सब टाल दिया…
कैसे तुम इतना हँस लेती हो?
कोई चिराग है जादुई तुम्हारे पास क्या, जिससे ये सब कर लेती हो?
कितना तुझे झकझोर दिया दुनिया ने,
तू कुछ नहीं बोली…
कितना बुरा कहा तुझसे,
तू सबको माफ़ करती चली गई…
इतना हुनर तुम कहाँ से लाई,
कैसे सबको प्यार कर पाई?
मुझे ये हुनर कभी नहीं आएगा,
शायद तुझ सा आदर्श जीवन ना हो पाएगा…
कभी सोचा तुझ सा जी लूँ तो एहसास तेरे दुखों का भी आ गया,
हिम्मत ना हुई फिर कभी दुआ में ये कहने की,
के काश! मैं तेरी परछाँईं सी भी हो जाती…
तुमको जाने उसने किस मिट्टी से बनाया है,
शायद फिर वो भी एक बार ही मुस्कुराया है…
पर तुमने तो उसको भी हराया है,
मानो ऊपर वाले से लड़ कर तुम शौक से दुनिया संग संघर्ष करने आई हो…

तुझको देख़कर हिम्मत मिलती है,

जीने की हर पल आस बँधती है..
मैं तेरी परछाँई ना सही पर इतना ज़रुर माँगती हूँ,
हर जनम में अपनी माँ बस मैं तुझे ही चाहती हूँ…
माना तुझ पर बहुत नाराज़ होती हूँ,
वजह-बेवजह तुझसे झगड़ लेती हूँ…
पर मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ..
हाँ माँ!
मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ।
#रshmi
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