समाज लोगों ने बनाया, लोगों को रास ना आया.. उसे बदलने कोई आगे ना आया, प्रथाएँ इसकी अपना कर चल दिया.. ज़माना सारा दोष 'समाज' पर मढ कर चल दिया। समाज को बदलाव चाहिए, ख़ुले विचारों वाले सरताज चाहिए.. कुरीतियाँ कितनी चली जाती हैं, इन्हें बुलंद आवाज़ वाला कोई शोर चाहिए.. हर दिन जाने कितनें …
तेरा शुक्रिया..
बेबाकी किसी को रास ना आई तेरी, नज़रें झुका कर चलना तेरा हरेक को अजीज़ हुआ करता है.. तूने भले ही आज के दौर में साँसें ली हों, पर जीना तेरा अब भी बहुतों को गवारा नहीं हुआ करता है.. हर कदम पर संघर्ष पाया है, फिर भी तूने साहस दिखाया है, तुझे ना आज …

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