आँखें खाली-खाली हैं
भरी-भरी हैं यादों से,
अंधेरे हो रहे हैं रौशन
लड़ते मेरे उजालों से…
तुमको देखकर लगता है
देखा नहीं कुछ सालों से,
बंद हो नज़र में तुम अब
जैसे बंद कोई दीवारों में…
१.
पूछे हैं राज़ सवाबों ने
अपने कई गुनाहों से,
हो रही है दुनिया पागल
अपने ही जवाबों से,
ढ़ूँढ़ती है जाने क्या कुछ
अपने सवालों में,
बंद हो नज़र में अब तुम
जैसे बंद कोई दीवारों में…
२.
कहा था शमा ने एक रोज़
जलते हुए चराग़ों से,
बदल गए हो तुम ऐसे
रातें जैसे सुबाहों से,
रह भी गया है और
क्या ही बाक़ी,
पूछें अब क्या-क्या
कितने गवाहों से?
बंद हो नज़र में अब तुम
जैसे बंद कोई दीवारों में…
-Rashmi Mishra
therashmimishra.com