एक रात काली, बहुत काली थी फिर भी
एक सपने की शमा जगमगाती रही…
अंधेरे में कहीं खो गया वो जुगनू चलते-चलते,
एक लौ मग़र अंदर उसके झिलमिलाती रही…
एक ओर समंदर का तूफ़ान बेचैन था,
एक ओर मिट्टी की प्यास उफ़नती रही…
उजड़ा हुआ एक आसमाँ सहमा पड़ा था,
एक बंजर ज़मीं फ़र्ज़ निभाती रही…

एक दूर कहीं से आवाज़ सुनता था,
एक नदी पास ही शांत बहती रही…
पिंजरों का एक ढ़ेर हुजूम लगाए खड़ा था,
एक उमंग की परवाज़ मचलती रही…
एक जोगी मंज़िल से ठगा बैठा था,
एक राह उस पर हँसती रही…
निडर हुआ एक हौसला चल पड़ा था,
एक ज़िंदगी बीच में कहीं फँसी रही…
#रshmi
©therashmimishra.com
Wah wah!!!
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Bahut Shukriya! 🙂
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The dilemma of life is narrated so beautifully here. Your expression is pure and heartfelt.
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Thank you so much! I’m humbled and glad that my words touched you in this way. ☺
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अति उत्तम
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शुक्रिया ! 🙂
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Lovely♥
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Thank you! 🙂
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