हम अकेलेपन के अँधेरे में खो रहे थे,
ये दुनिया कहती थी
हम घर में सो रहे थे…
दर्द भी छुपाते थे (और)
मरहम भी लगाते थे,
हम दरअसल दीवारों में घर ढ़ो रहे थे…
कुछ अरमान भी थे ख़ैर यूं तो,
वो मग़र झूमर पर झूल रहे थे…
एक कहानी बन गई दरवाज़ों के पीछे,
आलमारियों को दीमक़ चख रहे थे…
बैठा था वो पुराना घर भी
दफ़्न किये, कई राज़
जो उसे बेहद तंग कर रहे थे…
#रshmi
©TheRashmiMishra.com

Rashmi this is tooo good
Too deep and tooo relatable ☺️😍
Loved the flow and simplicity of this poem ……keep it up
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Thank you so much!☺… Such kind words keep me motivated. 🙏
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U truly deserve this….
Loved the post ☺️😍👍🏻
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🙏☺
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बहुत बढ़िया दीदी….
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बहुत शुक्रिया… 🙂
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🙂
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