कहो प्यार कैसा दिखता है?
तुम सा ! मुझ सा !
हमसे भी हसीन दिखता है?
एक दुनिया है मेरी बसाई हुई
तुम्हारे आस-पास,
शायद उस जैसा दिखता है…
सपने जैसा है,
बेतरतीब दिखता है,
हो ना हो जादू है उसमें,
जाग जाऊँ तो नहीं दिखता है…
कहो प्यार कैसा दिखता है?
…
शाम सा! रात सा!
भोर के धानी आँचल सा दिखता है?
एक सूरज हर रोज़
चमकता है ना,
आँगन में,
शायद उस जैसा दिखता है…
तितली जैसा है,
अपने रंगों पर इतरता है…
बिन बरसी बारिश सा है,
शायद पानी की बूँद सा है,
सागरिका सा मौजी दिखता है…
कहो प्यार कैसा दिखता है?
…
कभी महसूस ना हुई
उस पहली ज़रूरत सा,
या कभी पूरी ना हुई
हसरत सा है?
शायद ना-क़ुबूल
गुनाह सा है,
या जो बख़्शी ना गई,
उस माफ़ी सा है…
ये कितना अजीब है,
मुझे ज़रा पागल लगता है…
सब सा होकर भी,
सब जैसा नहीं दिखता है…
कहो प्यार कैसा दिखता है?
#रshmi

Nice👌👌
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Thank you! ☺
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बहुत ही जानदार
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बहुत ही शुक्रिया! ☺
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कहो प्यार कैसा दिखता है…
क्या रचना है बहुत खूब….👌👌👌👍👍
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शुक्रिया ! 🙂
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बेहद खूबसूरत।क्या हम जैसों के दिल के जज्बात सब़ा आप तक पहुचां आई है।most lovely dear!!
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Thank you so much! 🙂
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Most welcome,dear!!
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सुन्दर रचना !
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शुक्रिया ! 🙂
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