बेटी हूँ मैं..

मुझे मेरी जड़ों से जुदा मत करो,
वरना हर उखड़े पौधे सी मैं भी मुरझा जाऊँगी..
अस्तित्व को अपनें ख़ोकर ना उसने किसी को कुछ दिया ना वो किसी को याद आया।

मुझे मेरी पहचान से जुदा मत करो,
वरना हर फटे पन्ने सी मैं भी तहस-नहस हो जाऊँगी..
लिखे हर अक्षर को फाड़ कर ना उसे कोई पढ़ पाया ना उस पर कोई फिर लिख़ पाया।

मुझे मेरे अक्स से जुदा मत करो,
वरना टूटे शीशे सी मैं भी टूट जाऊँगी..
बिख़रे टुकड़ों को ना कोई जोड़ पाया ना ही किसी को उसमें अपना अक्स नज़र आया।

दुनिया में अदब के रख़वालों!
बेटी हूँ मैं, तुम्हारी रिवाज़ों की ग़ुलाम नहीं…
मग़र ज़माने को ये बात ना समझ में आई ना ही कोई समझा पाया।

#रshmi

pexels-photo-322070.jpeg
Courtesy: Photo library from WordPress

6 Replies to “बेटी हूँ मैं..”

Leave a comment