देश के दिल को इस क़दर खा रही, जैसे राजनीति दावत मना रही..
भाषाओं के भी धर्म बता रही, देखो राजनीति बँटवारे करवा रही..
आँखों पर कंबल ढ़के सो रही, कानों के पट बंद किये बोल रही,
ये राजनीति अँधी – बहरी हो गई..
राष्ट्र का सौदा कर इसे आपसी समझौता बता रही,
ये राजनीति फ़ायदा उठा रही..
नेता- नेता पर उँगली उठवा रही,
देखो ये तो मज़े उड़ा रही..
खिला खिला कर देश को गोली,
राजनीति कैसे सरपट दौड़ी..
फिर कहीं से झूठ बोल कर आ रही है,
ये देश उजाड़ रही है…
इसे भी टोक दिया किसी नें,
क्या तुम वही हो जो देश के भले के लिये बनी हो?
राजनीति बोली,
मैं तो नाक में दम करूँगी,
हर गुट में ज़ंग करूँगी..
चुटकियाँ ले ले कर,
देश को नज़रबंद करूँगी..
तुमने मुझे नीति माना होगा,
मैं तो राजनीति हूँ, राजनीति करूँगी!
#रshmi
एक अच्छी कविता, रश्मि जी की l
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शुक्रिया !!🙏☺
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