
कल देखा उसे गली के नुक्कड़ पर बनी अपनी कोटड़ी से बाहर बैठे हँसते हुए,
किसी से बातें करते, शायद भाई था उसका।
किसी से बातें करते, शायद भाई था उसका।
उतना खुलकर हँसना तो बेशक हमें भी नहीं आता जैसे उसकी हँसी ख़िलख़िला रही थी,
सच ही तो कहते हैं ख़ुशियाँ खुले बाज़ारों से ज़्यादा इस खुले आसमान के नीचे मिलती हैं..
सच ही तो कहते हैं ख़ुशियाँ खुले बाज़ारों से ज़्यादा इस खुले आसमान के नीचे मिलती हैं..
फ्लैट्स में हमारी बस साँसें चलती हैं,
जीना तो खुलकर वो जानती है वो जो नीचे आसमानों के रहती है…
उसे तो ये भी ‘लग्ज़री’ लगती है हमें जो लाईफ़ ‘नॉर्मल’ लगती है…
जीना तो खुलकर वो जानती है वो जो नीचे आसमानों के रहती है…
उसे तो ये भी ‘लग्ज़री’ लगती है हमें जो लाईफ़ ‘नॉर्मल’ लगती है…
उसके पास ‘ब्रांड नेम्स’ की जानकारी नहीं होगी,
उसके तो नये भी किसी की उतरन होगी,
पर उसके घर की ‘सोर्स ऑफ़ हैप्पीनेस’ उसकी हँसी होती होगी…शायद उसकी माँ उसे भी काम पर ले जाती होगी,
लौट कर फिर वो थोड़ा सुस्ताती होगी,
तब कहीं जा कर शायद पढ़ाई कर पाती होगी..उसके भी कुछ ख़्वाब होंगे जिन्हें पूरा करने के वो विचार में रहती होगी,
शायद उसकी हँसी के पीछे भी उसका इंतज़ार होगा जो उसे खुशियाँ देता होगा…
उसके तो नये भी किसी की उतरन होगी,
पर उसके घर की ‘सोर्स ऑफ़ हैप्पीनेस’ उसकी हँसी होती होगी…शायद उसकी माँ उसे भी काम पर ले जाती होगी,
लौट कर फिर वो थोड़ा सुस्ताती होगी,
तब कहीं जा कर शायद पढ़ाई कर पाती होगी..उसके भी कुछ ख़्वाब होंगे जिन्हें पूरा करने के वो विचार में रहती होगी,
शायद उसकी हँसी के पीछे भी उसका इंतज़ार होगा जो उसे खुशियाँ देता होगा…
शायद वो भी उन्हीं उमंगी लड़कियों में से एक होगी, जिसकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होंगी…
रोज़ ऐसे ही हँसते हँसते सो जाना शायद उसकी ज़िंदगी होगी,
फिर से उठकर अगले दिन की शुरुआत भी तो काम से करनी होगी…
फिर से उठकर अगले दिन की शुरुआत भी तो काम से करनी होगी…
वो शायद इस वजह से खुश हो जाती होगी के वो भी घर के लिए दो जून का जुगाड़ कर खाना खाती होगी..
वो किसी ग़रीब के आवास की ‘बेबस’ बेटी होगी ।
#रshmi